31 दिसंबर 2016 की सुबह पुणे से कोई आठ साढ़े आठ बजे चले होंगे। पुणे के अलग अलग इलाकों से होते हुए एक बीच के कस्बे में पहुँचे और वहाँ से बांए तरफ का रास्ता पकड़ा। कुछ जगहों पर सड़क संकरी है। सड़क के दोनों तरफ पेड़ पौधे ओर झाड़ियां हैं। मेरा ध्यान कैमरे पर गया। कैमरा उठाकर वीडियो बनाना शुरू कर दिया, लेकिन लग रहा था कि कुछ कमी रह गई है और एक बार फिर वीडियो बनाना शुरू कर दिया। दोबारा शायद ठीक बना था। इसी कसमकश में लगा था तो देखता हो कि दूर कहीं एक सूखा हुआ डैम नज़र आ रहा है । जैसे-जैसे गाड़ी डैम के नजदीक जा रही थी डैम अपने विशाल रूप में आता जा रहा था मानो हमारे स्वागत की खुशी में फूला नहीं समा रहा है। ऐसा भी तो हो सकता है कि उसे हमारे से उसके अस्तित्व को कुछ खतरा लग रहा हो और उस खतरे से लड़ने की तैयारी में अपने आकर को भीमकाय बनाने में लगा हो। लेकिन खतरा किस बात का, हम उसका क्या बिगाड़ लेंगे। शायद पहली संभावना ही ज्यादा प्रबल है हमारे स्वागत की ही तैयारी कर रहा था। इस संभावना की पुष्टि इस बात से भी हो जाती है कि डैम के ही लगभग ठीक सामने चाय-नाश्ता और गन्ने के रस का एक छोटा लेकिन बहुत ही सुंदर और साफ सुथरा ढाबा था जो हमें बिना चाय पिये आगे जाने से रुकने के लिए विवश कर रहा था। गाड़ी किनारे लगा दी। ढाबे के ऊपर सामने की तरफ एक कोने से दूसरे कोने तक लगा रंगबिरंगा बंदनवार जो दीपावली पर लगाये जाने वाले ’शुभ दीपावली’ के बैनर जैसा ही था लेकिन लंबाई और चैड़ाई में उससे कई गुना बड़ा उस ढाबे को एक एथनिक लुक दे रहा था। ढाबे के सामने के दोनों कोनों में लंबी-लंबी ईखों को बड़े ही करीने से सजाया हुआ था। ढाबे में बाएं तरफ क्रोम फिनिश वाले काउंटर के ऊपर साफ सुथरी नीले रंग से पेंट की हुई गन्ने के रस की मशीन लगी थी। अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति सफेद कुर्ता ओर चैड़े पायचे का पजामा पहने सिर पर सफेद टोपी लगाए बड़ी तल्लीनता से अच्छी तरफ साफ किये गए गन्ने का रस निकलने में मशगूल था। दाएं हिस्से में पीछे की तरफ चाय का काउंटर था और आगे वाले हिस्से में कुछ लोग कुर्सी मेज पर बैठकर चाय पी रहे थे। ढाबे के बाहर एक महिला भुट्टे भून रही थी। मेरा मित्र भी उससे भुट्टे भुनवाने के लिए वहीं बैठ गया। मैंने चाय का आर्डर दिया। ऐसा लगता था कि किसी मंझे हुए इंटीरियर डिज़ाइनर ने बड़े ही सलिखे के साथ उस ढाबे को आने वाले सैलानियों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है। सड़क के दूसरी तरफ जिधर डैम था, डैम के लगभग सामने नीले रंग की कार विपरीत दिशा में खड़ी थी, कार के अंदर कोई नही था शायद चाय पी रहे थे। जितने चाय बन रही थी मैं ढाबे और आसपास के लुभावने दृश्यों को तस्वीरों के तौर पर कैमरे में कैद करने की कोशिश में लगा था, गन्ने का रस निकालने वाले व्यक्ति से मैंने मेरे साथ एक तसवीर खिंचवाने का अनुरोध किया वो थोड़ा सरमाया फिर आ गया तस्वीर खिंचवाने। जिस समर्पण और खूबी के साथ वो अपने काम को कर रहा था वो मेरे सामने उसके व्यक्तित्व को अत्यंत प्रभावित करने वाले तरीके से पेश कर रहा था। फिर एक आवाज़ आयी कि चाय तैयार है। चाय पीते हुए नज़रे कहीं न कहीं उस सारे परिवेश को अपनी स्मृतियों में संजो लेना चाहती थीं। ऐसा लग रहा था कि मानो वो सारा परिवेश चाय की चुस्कियों के साथ अंतर्मन में घुला जा रहा है। यहीं बसने का मन है क्या, श्रीमती जी की आवाज से ध्यान टूटा और फिर बढ़ चले अपने अगले पड़ाव की ओर।
लवासा यात्रावृतांत के कुछ अंश
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Sachin Dev Sharma
Sachin Dev Sharma is an Indian Author, Travel Reviewer & Blogger, Human Resource Professional & Founder of Popular Travel Blog Website YATRAVRIT.COM . His travelogues, travel reviews and other articles have been published in quarterly Hindi Magazine Maun Mukhar, Uttaranchal Patrika, Dainik Jagran, Trip Advisor & Yatravrit.com etc. His travelogue book "Dosti Ek Yatra" has been admired a lot by his readers. सचिन देव शर्मा एक युवा लेखक, यात्रा समीक्षक व ब्लॉगर, मानव संसाधन विशेषज्ञ एवं लोकप्रिय यात्रा ब्लॉग वेबसाइट Yatravrit.com के संस्थापक हैं। उनके यात्रावृत्तान्त, यात्रा समीक्षाएं व अन्य आलेख समय समय पर मौन मुखर, उत्तरांचल पत्रिका, दैनिक जागरण, ट्रिप एडवाइजर, यात्रावृत आदि पत्र-पत्रिकाओं व वेबसाइट्स पर प्रकाशित होते रहे हैं। उनकी यात्रावृत्तान्त पुस्तक "दोस्ती एक यात्रा" पाठकों के द्वारा खूब सराही गई। View all posts by Sachin Dev Sharma