संयोग ही है कि कल भारत फ़िल्म देख रहा था और फ़िल्म में नौचंदी मेले का जिक्र आया और आज फादर्स डे है। उस समय नौचंदी मेले का क्रेज आज के रियो कार्निवाल से कम ना था। उत्तर भारत के सबसे बड़े मेलों में गिनती हुआ करती थी नौचंदी मेले की। नौचंदी मेले में जाना हमारे लिए साल भर की सबसे बडी घटना होती थी जिसका इंतज़ार सारे साल रहा करता था और मेरे पिता जी हमें बहुत ही बढ़िया तरीके से मेला दिखा कर लाया करते थे। हमारा क़स्बा मवाना जिसकी गिनती उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी तहसीलों में हुआ करती थी वो मेरठ से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर था और रात को मेला घूमकर मवाना वापस आना थोड़ी टेढ़ी खीर था क्योंकि मेरठ से मवाना की आखिरी प्राइवेट बस रात को नौ-साढ़े नौ बजे चला करती थी और उस बस को पकड़ने की कोशिश करना मतलब मेले का मज़ा किरकिरा करना था और परिवहन निगम की बसों का कोई निश्चित समय नहीं था और अगर मिल भी जाए तो भीड़-भाड़ में परिवार के साथ बस की सीट पर कब्ज़ा कोई पहलवान ही कर सकता था इसलिए हमारी सुविधा को ध्यान में रखते हुए व यह सोचते हुए कि कम से एक दिन तो साल में ऐसा हो जो परिवार के साथ तसल्ली से घुमा फिरा जा सके, पापा मवाना से मेरठ के लिए एक पारिवारिक मित्र की टैक्सी कर लिया करते थे। उस समय कस्बे में ज्यादातर सफेद एम्बेसडर कार ही टैक्सी के रूप में चला करती थी और हम उस सफेद एम्बेसडर में बैठ अपने आप को किसी वी आई पी से कम ना समझते। घर से करीब तीन बजे निकलते और चालीस पचास मिनट में ही मेरठ पहुंच जाते। इटनरी ये रहती की पहले सीधा आबूलेन पहुँचते और वहाँ दास मोटर्स के बाहर लगे चाट बाज़ार में दही सौंठ के बताशे (गोल गप्पे) और आलू की टिक्की का लुत्फ़ उठाते। आपको यहाँ ये बताना जरूरी है कि आबूलेन मेरठ का कनॉट प्लेस माना जाता है। बड़े बड़े कपड़ों और ज्वेलरी के शोरूम, नामी होटेल व रेस्टोरेंट सभी वहाँ पर पंक्तिवार दिखाई देते हैं। आबूलेन से निकल गाड़ी सीधा बुढ़ाना गेट पर रुकती थी। उस समय वहाँ पर सिंधी स्वीट्स की मशहूर दुकान हुआ करतीं थी। सिंधी की पूड़ी सब्ज़ी पूरे मेरठ ज़िले में अपने स्वाद के लिए जानी जाती और जनता उंगली चाट चाट कर खाया करती। पूड़ी सब्ज़ी खाने के बाद पापा स्पोंज़ी रसगुल्ला आर्डर करना कभी भी ना भूलते और गर्मी के दिनों में ठंडा-ठंडा रसगुल्ला हम मज़े लेकर खाते। दिन छिपते ही गाड़ी हमें नौचंदी मेला छोड़ देती। क्योंकि उस ज़माने में मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे इसलिए वापसी में मिलने की जगह और समय पहले ही ड्राइवर को समझा दिया जाता। मेले में प्रवेश करते ही खिलौने की दुकानें हमें अपनी और आकर्षित करने लगती। किसी को कार चाहिए तो किसी को बैट बाल और किसी को चिड़ी बल्ला (रैकेट)। मैजिक शो, जायंट व्हील के अलावा सर्कस भी हुआ करता। हम हमेशा जायंट व्हील पर झूलने की ज़िद करते लेकिन पापा को लगता कि ऊपर जाकर बच्चे कहीं डरने ना लगे इसलिए छोटे झूलों पर झूल कर ही काम चलाना पड़ता। मनोरंजन के अलावा मेरठ की प्रसिद्ध कैंची, अलीगढ़ के ताले, मुरादाबाद का पीतल के समान, क्रिकेट का सामान, जैविक खाद्य सामग्री जैसे जैविक अचार, मुरब्बे, खेती के उपकरण व संबंधित जानकारी हेतु स्टाल भी हुआ करते थे। चाट के स्टाल्स के साथ साथ स्वादिष्ट हलवा पराठा के होटेल भी नौचंदी की शोभा बढ़ाते नज़र आते। पिलखुआ का खद्दर का सामान और चादर की भी बहुत सी दुकान होती। खजला नाम की मिठाई नौचंदी का विशेष आकर्षण हुआ करती थी। मैंने नौचंदी के अलावा उस मिठाई को कहिं नहीं देखा। अक्सर मेले से जैम, मुर्राब्बा आदि पापा ज़रूर लाते। मेले में घूम कर नई नई चीज़े देखना ही अपने आप में किसी सौगात से कम ना था। मेला घूमने के बाद पापा बार बार वापस चलने के लिए कहते और हम लोग थोड़ा और देर घूमने के लिए उनकी मनुहार करते और आखिकार अपने मनपसंद खिलौने ख़रीदकर ही वापस आने के लिए तैयार होते और वो भी खुशी खुशी खिलौने हमें दिलाते। बाद में हमारे मवाना में भी एक मेला लगने लगा पर वो बात कहाँ जो नौचंदी मेले की थी जिसका इंतज़ार हम पूरे साल देखने के लिए करते और पापा अपना प्यार हम पर उड़ेलने के लिए।
फादर्स डे और नौचंदी का मेला
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Sachin Dev Sharma
Sachin Dev Sharma is an Indian Author, Travel Reviewer & Blogger, Human Resource Professional & Founder of Popular Travel Blog Website YATRAVRIT.COM . His travelogues, travel reviews and other articles have been published in quarterly Hindi Magazine Maun Mukhar, Uttaranchal Patrika, Dainik Jagran, Trip Advisor & Yatravrit.com etc. His travelogue book "Dosti Ek Yatra" has been admired a lot by his readers. सचिन देव शर्मा एक युवा लेखक, यात्रा समीक्षक व ब्लॉगर, मानव संसाधन विशेषज्ञ एवं लोकप्रिय यात्रा ब्लॉग वेबसाइट Yatravrit.com के संस्थापक हैं। उनके यात्रावृत्तान्त, यात्रा समीक्षाएं व अन्य आलेख समय समय पर मौन मुखर, उत्तरांचल पत्रिका, दैनिक जागरण, ट्रिप एडवाइजर, यात्रावृत आदि पत्र-पत्रिकाओं व वेबसाइट्स पर प्रकाशित होते रहे हैं। उनकी यात्रावृत्तान्त पुस्तक "दोस्ती एक यात्रा" पाठकों के द्वारा खूब सराही गई। View all posts by Sachin Dev Sharma
Such a beautiful post – Happy father’s Day
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Thanks Shantanu!
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My absolute pleasure
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