अवधेश वर्मा का डेब्यू नॉवेल “लव यू पापा” मानव संबंधों के उस पक्ष को उठता है जो परिवार के लिए त्याग, तपस्या करने के बावजूद भावनात्मक स्तर पर उपेक्षा का शिकार रहा है, जिस संबंध के भावनात्मक पक्ष को या तो महत्व दिया ही नहीं गया या बहुत कम महत्व दिया गया। लेखक ने पिता-पुत्र के भावनात्मक पक्ष को मजबूती से दर्शाने के लिए अपनी कलम को उठाया है। अपने पहले ही उपन्यास में इस विषय को उठाना यह दर्शाता है कि कहीं ना कहीं लेखक स्वयं इस विषय से भावनात्मक रूप से जुड़ा है।
उपन्यास सेठ शम्भूनाथ व उनके संभ्रांत, सम्पन्न किन्तु संतान विहीन परिवार की कहानी से शुरू होता है जिसको बहुत मन्नतें मांगने के बाद संतान के रूप में तीन पुत्रों की प्राप्ती होती है। कहानी उनके बड़े पुत्र नंदन के इर्द-गिर्द घूमती है और बहुत लाड़ प्यार से उसका पालन पोषण किया जाता है लेकिन जब समय का पहिया घूमता है तो परिवार अर्श से फर्श पर आ जाता है, निर्धनता परिवार को आ घेरती है। युवा होने पर उसका विवाह अपने पिता के जिगरी दोस्त की बिटिया के साथ होता है। गरीबी के कारण अपने किनारा कर लेते हैं और नाज़ों में पला लड़का अपने परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए दिन रात मेहनत मशक्कत कर, कष्ट सहन कर अपने दोनों बेटों को पढ़ता है। नंदन के दोनों पुत्रों में से बड़ा पुत्र राम गलत सोहबत में पड़ जाता है और अपने पिता को अपमानित करता है, नंदन इस अपमान को नहीं सह पाता है और इस संसार को अलविदा कह देता है।
यूँ तो कहानी पाठक को अंत तक बांध कर रखती है लेकिन उपन्यास के कुछ किरदार जैसे सेठ शम्भूनाथ के भाई विशम्भरनाथ व उनके दूसरे बड़े भाई जमुना प्रसाद का किरदार अचानक से बिना किसी रूप रेखा के सामने आ जाते हैं। उपन्यास का अंत भी और अधिक विस्तार से करने की गुंजाइश नज़र आती है। लेखक ने विभिन्न चरित्रों की सहायता से कहानी की पृष्ठभूमि के साथ न्याय करने का पूरा प्रयास किया है जो सराहनीय है।
– सचिन देव शर्मा